radhey-radhey

Thursday, February 3, 2011

प्रस्तावना

!!जय-जय सियाराम!!




आदरणीय भक्तजन श्री रामजी की कृपा से मेरी ऑरकुट-प्रोफायल पर "श्रीरामचरितमानस " कम्युनिटी अपने लक्ष की ओर अग्रसर है ! 
मेरा प्रमुख उद्देश्य कम्युनिटी पर श्री रामचरितमानस का लेखन एवं भाष्य-व्याख्या करना है !
साथ ही साथ विभिन्न श्रीजी कृपा चरितों का रेखांकन 
एवं विस्तार से वर्णन-स्पष्टीकरण करना है !
अभी हाल ही में श्रीजी की महत कृपा से,
मैंने कुछ ब्लोगों का निर्माण एवं संपादन किया है !
और आगे भी इन सभी ब्लोगों पर कार्य-सेवा करनी ही है ! 
इसी कड़ी में , 
मैं "श्री रामचरितमानस"नामक ब्लॉग का आधार रख रही हूँ ! 
मेरा प्रस्तुत ब्लॉग में, श्रीरामचरितमानस का-
लेखन-भाष्य-व्याख्या एवं बिभिन्न कथा प्रसंगों पर,
यथा-योग्य विस्तृत-विवेचन करना ही परम उद्देश्य है ! 
मित्रो, 
श्री रामचरितमानस नामक श्री सीता-राम भक्ति प्रदायक,
हिन्दी भाषा महाकाव्य का निर्माण,-
रामभक्त संत गोस्वामी तुलसीदास जी महाराज ने किया ! 
यद्यपि श्री रामचरित पर एक ऐतिहासिक ग्रन्थ (संस्कृत भाषा में) 'रामायण' जिसके रचियता आदिकवि ऋषि वाल्मीकि हैं, 
भी जन-मानस में अति सम्माननीय है ! 
परन्तु जिस प्रकार लोक-जन-मानस में राम-कथा के रूप में,
प्रसिद्धि श्रीरामचरितमानस को मिली ,
उतनी संसार में किसी भी ग्रन्थ-पुराण या रचना को नहीं मिली, 
आज श्रीरामचरितमानस के उदाहरण वेद-ऋचा सदृश,-
किसी भी तथ्य की पुष्टि हेतु प्रमाण के रूप दिए जाते हैं ! 
श्री रामचरितमानस की एक-एक पंक्ति ,
एक-एक शब्द-अक्षर ,साक्षात् भगवान रघुवीर श्री राम स्वरुप है ! 
किसी भी मनोरथ से या निष्काम प्रेमभाव से ,
श्रीरामचरितमानस का पारायण, 
पाठी का लोक एवं परलोक सभी प्रकार से मंगल कर ,
परम दुर्लभ श्री सीताराम भक्ति प्रदत्त करता है ! 
मित्रो, 
श्रीरामचरितमानस पाठ न केवल भगवान श्रीराम की उपासना में 
अपितु अन्य सभी मांगलिक अवसरों पर भी गाया जाता है !
जैसे नवरात्रियों के सुअवसर पर संपूर्ण रामचरित पाठ 
नवदिवसों में "नमा-परायण" करके ,
दीपावली के धन-धान्य मंगल प्रदायी त्यौहार पर 
एकदिन में सम्पूर्ण रामचरित अखंड-पाठ किया जाता है ! 
इसी प्रकार अनेकों भक्त श्रीरामचरितमानस का पारायण 
प्रतिबर्ष-प्रतिदिन मास-परायण ,
या अन्य किसी बिधि से किया करते हैं ! 
श्रीरामचरितमानस में सातकांड (सप्त-विभाग)हैं !
जो क्रमशः इस प्रकार हैं !-
--१-वाल कांड 2 -अयोध्या कांड ३-अरण्य कांड ४-किष्किन्धा कांड  
   ५-सुन्दर कांड ६-लंका कांड ७- उत्तर कांड  
बहुत से भक्त अपने-अपने भावानुसार,
किसी एक कांड का भी परायण करते हैं ! 
मित्रो, मेरा एवं सभी संतों का अभिमत है कि,
श्री रामचरितमानस गान हरिनाम संकीर्तन ही है ,
जोकि कलिकाल में एक मात्र सर्वोत्तम उपाय है ! 
इसके द्वारा आप अपने अभीष्ट मनोरथों की सिद्धि प्राप्त कर सकते हैं !
तथा भगवान श्री राम की भक्ति प्राप्त कर धन्य-धन्य हो सकते हैं !
यह प्रमाणित है कि 
जहाँ-जहाँ श्रीरामचरितमानस गान होता है वहाँ,-
अंजनीनंदन श्री रामभक्त हनुमानजी महाराज उपस्थित रहते हैं !
अतः क्यों न आज से अपितु अभी से 
रामचरित गान का संकल्प लें,-
एवं प्रस्तुत ब्लॉग को ज्वाइन कर -
भगवान श्री सीतारामजी के मनोहर चरण-कमलों में-
चित्त को समर्पित कर दें ! 
यदि आप ऑरकुट पर भी हैं तो "श्री रामचरितमानस" कम्युनिटी 
की भी सदस्यता ग्रहण कर 
अपने नाम के साथ "राम चरण-पंकज मन जासु " 
होने का स्वाभिमान जोड़ लें !
कम्युनिटी लिंक ऐड्रस-   
http://www.orkut.co.in/Main#Community?cmm=97986240 
मैंने ब्लॉग 'राधे-राधे' जिसका लिंक ऐड्रस-
http://sweetieradhe.blogspot.com/ 
sweetieradhe.blogspot.com 
 पर श्री हनुमान चालीसा मूल लेखन 
तथा हिन्दी एवं इंग्लिश भाष्य-व्याख्या की है 
आप उससे भी ज्वाइन कर ,
अपने भक्ति रस में बृद्धि कर सकते हैं ! 
साथ ही साथ मेरी ऑरकुट प्रोफाइल से "जपत निरंतर हनुमत वीरा "  नामक कम्युनिटी की सदस्यता ग्रहण कर श्री हनुमत कृपा प्राप्त कर सकते हैं ! 
कम्युनिटी लिंक ऐड्रस- 
http://www.orkut.co.in/Main#Community?cmm=108563705

5 comments:

  1. thank you prafulla
    and most welcome lalit
    jay siyaram
    radhe-radhe
    harekrishna!!

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  2. your great welcome manu ...radhe-radhe
    jay sita-ram
    har-har mahadev
    harekrishna!! hari bol !!

    ReplyDelete
  3. धर्म न दूसर सत्य समाना

    हरेकृष्ण !

    मित्रो , संसार में केवल एक मात्र सत्य धर्म ही सबसे श्रेष्ठ है !

    सत्य -सनातन है , सनातन का अर्थ किसी व्यक्ति विशेष के द्वारा निर्मित नहीं ,सनातन का विस्तृत अर्थ है -जो पहले अर्थात स्रष्टि से पूर्व था ,स्रष्टि के समय अर्थात आज भी है ,एवं स्रष्टि के बाद यानि हमेशा रहेगा !

    हो सकता है कुछ समय मानव निर्मित छद्म धर्म संसार में कुछ समय के लिए व्याप्त दिखें ,परन्तु जिस प्रकार वादल सूर्य को कुछ समय ढक लें परन्तु सत्य रूपी सूर्य पुनः इन वादलों को फाड़ कर प्रकट हो जाता है ! इसी प्रकार सत्य-सनातन धर्म अन्य सभी मायावी -झुंठे -कल्पित धर्म के नाम पर अधर्मों को अपने तेज से पुनः नष्ट कर समस्त चरा-चर की रक्षा हेतु संसार में व्याप्त हो जाता है !

    मित्रो सौभाग्य से हमारा जन्म इस सत्य-सनातन धारा में हुआ है !

    अथवा भगवान के-श्री गुरु के आशीर्वाद से हम सनातन धर्म धारा से जुड़े हैं !

    तो हमारा नैष्ठिक कर्तव्य है कि हम अखिल जगत में सनातन धर्म -धारा के अविरल प्रवाह के लिए संकल्प बद्ध हों !

    इसी सत्य-सनातन प्रवाह में अद्वैत,द्वैत,शुद्धा-द्वैत ,द्वैता-द्वैत, अचिन्त्य भेदा-भेद ,विशुद्धा-द्वैत नामक अनेकों सत्य-संकल्पित धाराएँ वहीं ! जिनका एकमात्र प्रयोजन सत्य से साकार होना है !

    उपरोक्त धाराओं में अंतिम चार धारा वैष्णव रीती कहलातीं हैं !

    जिनमें भगवद रूपी सत्य प्राप्ति के लिए उपासना रीती भगवद कृपा-प्रेम भरा पड़ा है !

    यहाँ साधक का संपूर्ण योग-क्षेम भगवद शरणागति के द्वारा , श्री भगवान के कर-कमलों में होता है ! यहाँ श्रीभगवान अपनी कृपा महिमा के द्वारा शरणागत-भक्त को परम दुर्लभ 'अभय' पद प्रदान करते हैं !

    अर्थात भक्त को किसी भी प्रकार कि चिंता-क्लेश-दुःख-पीड़ा-ताप-अवसाद-भ्रम नहीं रहता एवं इसी जीवन में भगवद प्राप्ति हो जाती है !

    मित्रो,

    यह सर्व-श्रेष्ठ साधन भगवद कृपा-शरणागति पूर्णरूप से निर्मल-चित्त होने पर प्राप्त होती है !

    यथा "निर्मल मन जन सो मोहि पावा ! मोहि कपट छल छिद्र न भावा !!"

    और यह निर्मल चित्त-ह्रदय भगवान के श्री नामों के जप-संकीर्तन से प्राप्त होता है !

    तो आइये अभी से इस परम मनोहर भगवद नाम जप-संकीर्तन को अपना आधार वना प्रेम से गायें-

    हरेकृष्ण-हरेकृष्ण कृष्ण-कृष्ण हरे-हरे !

    हरेराम-हरेराम राम-राम हरे-हरे !!

    जय-जय श्री राधे !!

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