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Sunday, July 24, 2011

भगवान के परम पावन जन-मन-रंजन नाम का उपहास जैसा कुकृत्य न करें


एक मित्र ने मुझे facebook पर श्री हरिनाम लिखने पर मासा अल्लाह लिखा 
जबकि नाम-पहचान से वह हिन्दू था !
मेरा निवेदन है कि कृपया ध्यान रखें--- ऐसा अनर्गल संबोधन श्री हरि के महत नामों पर कमेन्ट करना नामापराध है - भगवान के परम पावन जन-मन-रंजन नाम का उपहास जैसा कुकृत्य है अतः ऐसा न करें !
मेरा उसे निम्नांकित प्रतिउत्तर रहा !
श्री हरि नामावली -जयघोष में ये मासा और अल्लाह कहाँ से ले आये .. कृपया श्री हरि के शास्त्र -वेद -पुराण सम्मत नामों के बीच व्यर्थ का संबोधन न जोड़ें !
.......... जय श्रीराम !!

आइये भगवान के कुछ शास्त्र सम्मत-भक्त मन रंजन परम पावन मनोहारी नामों का आनंद लें -
जय पार्थ सारथी -जय गीता ज्ञान उद्घोषक-जय वासुदेव-जय श्री कृष्ण-जय केशव-जय माधव-
जय श्री मन नारायण -जय विश्वनाथ-जय आशुतोष-जय महाकाल-जय शिव शम्भो -जय गजानना-
जय चतुरानन-जय जग जननी -जय दीनानाथ प्रभो -जय भक्त वत्सल-जय सच्चिदानंद-जय दीनबंधू-
जय सत्य प्रभो -जय धर्मं सनातन -जय रघुवर-जय-जय श्री हरि प्रेमा नन्द प्रभो !
जय-जय श्री राधेश्याम !
नमः पार्वती पत्ये हर-हर महादेव !!

3 comments:

  1. मोहन हमारे मधुवन में तुम आया न करो,
    जादू भरी या बाँसुरी बजाया न करो ॥

    सूरत तुम्हारी देख के सलोनी साँवरी,
    सुन बाँसुरी की राग को हम हो गयी बावरी,
    माखन को चुराने वाले दिल चुराया न करो ॥१॥
    मोहन हमारे मधुवन में तुम आया न करो,
    जादू भरी या बाँसुरी बजाया न करो ॥

    माथे मुकुट, गलमाल, कटि में काछनी सोहे,
    कानों में कुण्डल झूमके मन मेरे को मोहे,
    इस चन्द्रमा के रुप को लुभाया न करो ॥२॥
    मोहन हमारे मधुवन में तुम आया न करो,
    जादू भरी या बाँसुरी बजाया न करो ॥

    अपनी यशोदा मात की सौगन्ध है तुमको,
    यमुना नदी के तीर पै तुम ना मिलो हमको,
    इस बाँसुरी की तान पै बिलमाया ने करो ॥३॥
    मोहन हमारे मधुवन में तुम आया न करो,
    जादू भरी या बाँसुरी बजाया न करो ॥

    इसी तुम्हारी बाँसुरी ने मोहिनी डारी,
    चन्द्र सखी की बीनती तुम सुनियौ बनवारी,
    दरस दिखा दे साँवरा अब देर नाकरो ॥४॥
    मोहन हमारे मधुवन में तुम आया न करो,
    जादू भरी या बाँसुरी बजाया न करो ॥

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  2. श्री राधा जी ने अपने महल मै तोते पाल रखे थे और उन्हें रोज़ हरे कृष्ण
    हरे कृष्ण कहती थी तो तोते भी सारा दिन हरे कृष्ण हरे कृष्ण बोलते रहते
    और सब सखियाँ भी हरे कृष्ण हरे कृष्ण कहती | एक दिन राधाजी यमुना किनारे
    विचर रही थी सखियाँ दूर झुंड मै किकोल कर रही थी | इतने मै उनकी सामने
    नज़र पड़ी तो क्या देखती है की शामसुंदर नारद जी से बतिया रहे है | श्रीजी को
    क्या सूझी वो छिप कर उनकी बातें सुनने लगीं | नारद जी कह रहे थे कि जहाँ भी
    मैं जाता हूँ वहीं पूरे ब्रज मै हरे कृष्ण हरे कृष्ण कि गूँज सुनाई देती
    है | ठाकुरजी
    बोले पर मुझे तो राधे राधे नाम प्रिय है | इतना सुनते ही राधाजी कि आँखों
    से अश्रूयों
    कि धरा बहने लगी वो तुरंत अपने महल पर लौट आयीं | उन्होने अब अपने तोतों से
    हरे कृष्ण कि जगह राधे राधे कहने लगी | जब सखियों ने कहा लोग तुम्हे अभिमानी
    कहेंगे कि तुम अपने नाम कि जय बुलवाना चाहती हो | श्री जी ने कहा कि अगर मेरे
    प्रियतम को यही नाम पसंद है तो मैं तो यही नाम लूंगी चाहें लोग कुछ भी कहें |

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  3. जो आनंद सिन्धु सुख रासी ! सीकर तें त्रैलोक सुपासी !!
    सो सुखधाम राम अस नामा ! अखिल लोक दायक विश्रामा !!
    जनकसुता जग जननी जानकी ! अतिशय प्रिय करुना निधान की !!
    ताके युग पद कमल मनावहुं ! जासु कृपा निर्मल मति पावहुं !!
    जय सियाराम !!

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